केदरनाथ प्राकृतिक आपदा ” महाविनाश “
हे केदार !
ये तेरा महाविनाश
तेरे इस क्रोध ने
कर दिया असंख्यों का नाश ,
इस कलियुग में भी
बजा – बजा के डमरू
खूब किया तांडव
कर दिया खंड – खंड
जर – जमीन और मानव ,
तेरे इस जल – प्रलय को रोकने
क्यों नहीं आये नारायण
इस जल को सोखने ?
क्या इतने रुष्ट हो गए तुम हमसे
कि …छिन लिया अपनों को अपनों से ,
हमेशा अपने ही भक्तों का क्यों लेते हो इम्तहान
क्या इतना ज़रूरी था देना इनकों मृत्यु का ज्ञान
इस ज्ञान को क्यों नहीं दिया सबको एक साथ
कुछ के लिए ही सिर्फ क्यों बढा दिया हाथ ?
हमारा अखण्ड विश्वास तुम हो
फिर भी विश्वास दिलाते हो
इस महाप्रलय में भी खुद को बचा
अपने होने का एहसास करते हो ,
तुम आदि हो अंत हो
तुम वेग से भी प्रचंड हो
तुम पूर्ण हो सम्पूर्ण हो
तुम खंड में भी अखंड हो ,
हम अज्ञान
हम नादान
हम क्षमावान ,
तुम ज्ञान
तुम महान
तुम दयावान ,
हे नाथ !
अब कभी ये ना करना
अपनी जटा समेटे रखना
हमारे घावों का मरहम जो बह गया है
उसको किसी तरह लाओ
और हमारे कभी ना भरने वाले घावों पर
अपने हाथों तुम्हीं लगाओ !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/07/13 )