केतकी का अंश
आज अंश
कुछ ज्यादा ही उदास
हो रहा था
अपनी मां केतकी को
द्वार तक छोड़ने भी
नहीं आ रहा था।
केतकी के अतिरेक
पुचकारने के बाद भी
वह आंगन से आगे
टस से मस नहीं हो रहा था।
थक हार कर केतकी
ने ज्यादा समय होते देख
एक फ्लाइंग किस
देते हुए स्वयं को खुद ही
अपने क्रश के लिए
विदा कर लिया था।
रास्ते में अपने भाग्य पर
रोने को विवश थी
यह कैसी विडम्बना थी
अपने बच्चे को अनाथ छोड़
कर दूसरे के बच्चे को
जो पालने चली थी।
अंश की उदास आंखे
से अनवरत आंसू
बह रहे थे
पर वह मासूम एक
मां की मजबूरी को
भी कैसे समझ सके।
नित्य तो वह मां से
दूरी सहन कर ही लेता था
पर आज उसने मां से
अपने जन्मदिन का
वास्ता दिया था
पर मां कि विवशता ने
उसे भी मौन कर दिया था।
इतनी मुश्किल से मिली
मां की क्रश की नौकरी
कहीं छूट न जाय
ऐसा समझ उसने मां से
मौन विदा लिया था।
शायद अंश को
पता था कि जन्मदिन
के चोचले बस अमीरों
के घर की सम्पदा है
उन जैसो के भाग्य में तो
बस मुफलिसी ही वदा है।
क्रश में आज सारांश
के मां बापू ने
उसके जन्मदिन पर एक
पार्टी का आयोजन रखा था
केतकी के बेहतर
व्यवहार के लिए उन्होंने
उसे भी एक उपहार दिया था।
पर अपने अंश कि उपेक्षा
व दूसरे की देखभाल
करते केतकी का तन
आज एकदम थक चला था
क्रश का काम था कि आज
समाप्त होने के नाम ही
नहीं ले रहा था।
और दिनों के अपेक्षा
केतकी को आज
कुछ ज्यादा ही देर हो गयी
अंश के लिए बिस्कुट व
एक नए बनियान के चक्कर में
वह और लेट हो गयी ।
घर जाने की शीघ्रता में
उसका कलेजा उछलने लगा था
पर घर पहुंचते ही
अंश को आँगन में पड़ा देख
उसका जी धक् से हो गया था।
आज के जीवन का
यह एक सनातन सत्य है
टूटते परिवार व
छीजते रिश्तों के कारण
वर्तमान भविष्य से
भयभीत है।
आज जीवन जिया नहीं
जा रहा है
बल्कि किसी तरह काटा
व निभाया जा रहा है।
निर्मेष
क्षद्म हंसी को मुखौटा लिये
सब फिर रहे है
अंदर के घाव से रक्त
अनवरत रिस रहे है।
निर्मेष