केचुआ
केंचुआ
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आज कितने ही वर्षों पश्चात
बारिश से भीगी सोंधी मिट्टी में एक केंचुआ दिखाई दिया
बचपन की शैतानियां साकार हो गई
नमक डालकर केचुए को विभक्त करना
दो दिशाओं में अलग अलग रेंगते देखना
कितना दुष्ट उपक्रम था?
कभी किसी ने रोका नहीं ,
नमक छिड़कने से टोका नही।
आज जब केचुआ दिखा
तो सहसा एक विचार कौंधा
इस निरीह के शरीर में तो रीढ़ की हड्डी नही
हाथ है न पैर है , नाक,कान , आंख, दांत नहीं
लेकिन जिस व्यक्ति के शरीर को
रीढ़ की हड्डी का वरदान मिला
अनेक अंगो से सज्जित शरीर का सम्मान मिला
वो तो केचुए से भी अधिक कमजोर
चार दिशाओं में चलने वाला प्रमाण मिला ।
उस केंचुए पर तो मैने नमक छिड़का था
उसकी दुर्दशा और दो भागों में देख ,
अति प्रसन्न हंसा था
इस रीढ़ की हड्डी वाले व्यक्ति ने खुद पर ही
अपने स्वार्थ का नमक छिड़का
घूम रहा है दसों दिशाओं में रूप बदल बदल मन का ।
मिट्टी में उपजा केचुआ , कृषक का नायक है
मिट्टी की उर्वरा शक्ति का एक घटक सहायक है
रीढ़ की हड्डी वाले केचुओं का
कब क्या आधार किसी को मिला
दसों दिशाओं में धन ढूंढते ,
इनके जीवन का अब क्या सिला ?
अर्थोपार्जन में व्यस्त व्यक्ति ने क्या व्यभिचार नही किया
अपना व्यवसाय स्थापित करने हेतु
केंचुए का भी बलिदान दिया
कितने ही उद्योग और परिवार आज केंचुए पर पल रहे
बेचकर उर्वरा और तेल
अर्थ अर्जित कर उसी केंचुए को मसल रहे ।
मुझे अपने बचपन की शैतानियां
केंचुए पर नमक डालना,
दो भागों में विभक्त करना
सारा दृश्य अंदर तक हिला गया
पछतावा भी बहुत हुआ ।
काश । ये नमक मैने
अपनी रीढ़ की हड्डी पर डाला होता
केंचुए के दर्द में स्वयं मे को ढाला होता
शायद मेरी दुनिया में न इतना घोटाला होता ।
मैं मीलों भागा , पता नही किस तलाश में
जिंदगी में कुछ खास हासिल न हुआ
न मंजिल मिली न दी दुनियां को खुशी खरी
एक केचुआ मुझे सीख दे गया बहुत बड़ी
केचुआ किसी न किसी रूप में
मानव का अन्नदाता है
क्या आज भी कोई इसको सहेजता
या फिर अपनाता है ?
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)