केकैयी का पश्चाताप
सोच रही केकैयी हृदय में,इतना अपयश क्यों पाया
रौद्र रूप राजा दशरथ को,ऐसा क्यों कर दिखलाया
मैं तो थी सबसे प्रिय रानी,उनके दिल पर राज किया
क्यों ऐसा वरदान मांगकर, दशरथ को नाराज किया
पड़ा बुद्धि पर मेरे उस दिन, कैसा ये काला साया
केकैयी सोच रही अब मन में, इतना अपयश क्यों पाया
कहते थे सब वीर मुझे पर कायरता का काम किया
दासी की बातों में आकर, क्यों खुद को बदनाम किया
अपने प्यारे राम पुत्र पर,जुल्म बड़ा मैंने ढाया
केकैयी सोच रही अब मन में, इतना अपयश क्यों पाया
सजा कुकर्मों के ही अपने, भुगत रही हूँ रो रोकर
भरत राम का बीत रहा है,जीवन धरती पर सोकर
खुद अपने ही कारण मैंने, वैधवता का दुख पाया
केकैयी सोच रही अब मन में,इतना अपयश क्यों पाया
बहन कौशल्या और सुमित्रा, दोनों को ही त्रास दिया
पुत्र वियोग दिया था मैंने, मगर उन्होंने क्षमा किया
भूल गई क्यों डूब स्वार्थ में,नश्वर ये काया माया
केकैयी सोच रही अब मन में,इतना अपयश क्यों पाया
समझ नहीं आता है मुझको,पश्चाताप करूँ कैसे
और भरत के कोमल मन का, अब संताप हरूँ कैसे
माता और पुत्र का नाता, उसने सब कुछ ठुकराया
केकैयी सोच रही अब मन में,इतना अपयश क्यों पाया
राम लौट कर आएंगे जब,चरणों मे गिर जाऊँगी
नहीं सामना उन आँखों का, अब मैं तो कर पाऊँगी
काला काला हर दिन मेरा, काला ही है परछाया
केकैयी सोच रही अब मन में,इतना अपयश क्यों पाया
डॉ अर्चना गुप्ता