केकई एक चरित्र
विडम्बना है कि केकई का चरित्र राम को वनवास जाने का पर्याय माना जा रहा है लेकिन इस मर्म के पीछे मंथरा के चरित्र को अनदेखा किया जाता है बुरा उसे ही माना जाता है राम वनवास के लिए अहम भूमिका मंथरा की रही है ।
वास्तव में देखा जाए तो मंथरा ने दासी धर्म, अच्छे शुभचिंतक की भूमिका निभाई है । वह केकई की दासी थी इसलिए उसके हित केकई के लिए पहले थे भले ही पूरा अयोध्या राम को चाहता था ।
दूसरी बात राम कर्ता थे , उनके माध्यम से राक्षसों का और अहंकारी रावण का वध करवाना था तो मुख्य विध्वंसक तो मंथरा हुई और केकई अपवाद रही ।
तीसरी बात अगर हम राम वनवास वाले प्रसंग के इतर देखें तो सम्पूर्ण रामायण में केकई की सकारात्मक भूमिका और सोच रही है । दशरथ के प्रति, अयोध्या के प्रति, राम के प्रति भी ।
अगर केकई , दशरथ के प्राण हरण तक कठोर नहीं होती तो आज वह इतनी निर्दयी नहीं मानी जाती । उसका उदेश्य राम को वनवास और भरत को राजा बनाना ही था । लेकिन संभवतः इससे उसे राम के वनवास जाने की जगह अयोध्या में ही राम को एकांतवास के लिए राजी होना पड़ता लेकिन इससे राक्षस वध नहीं हो पाते ।
चौथी बात इस प्रसंग के माध्यम से समाज में यह भी संदेश दिया गया है कि जब वक्त बुरा होता है तब साया भी साथ छोड़ देता है संभवतः दशरथ के भी ऐसा ही हुआ , क्यो कि केकई, दशरथ की सबसे प्रिय पत्नी थी ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल