केंचुआ
सरक-सरक कर चलता है,
बढ़ता और सुकड़ता है ,
छोटा-सा जीव है केंचुआ,
खेतों और मिट्टी में रहता,
दलदल और बरसात में दिखता ,
तनिका डर लगता है जब हिलता डुलता ,
किसान मित्र कहलाता है ,
गमलों की मिट्टी उपजाऊ बनाता,
पंछी का भोजन बन जाता ,
कभी किसी का अहित न करता ,
बच्चों को अद्भुत है लगता ,
दो हिस्सों में बँटता फिर भी है रेंगता ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।