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16 Feb 2022 · 1 min read

केंचुआ

सरक-सरक कर चलता है,
बढ़ता और सुकड़ता है ,

छोटा-सा जीव है केंचुआ,
खेतों और मिट्टी में रहता,

दलदल और बरसात में दिखता ,
तनिका डर लगता है जब हिलता डुलता ,

किसान मित्र कहलाता है ,
गमलों की मिट्टी उपजाऊ बनाता,

पंछी का भोजन बन जाता ,
कभी किसी का अहित न करता ,

बच्चों को अद्भुत है लगता ,
दो हिस्सों में बँटता फिर भी है रेंगता ।

रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।

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