कृष्ण
हे वासुदेव केशव सर्वपालक
तुम्हारा क्या मैं अर्थात लिखूं?
तुम अच्युत, गोपाल, उपेंद्र,
पुरुषोत्तम क्या मैं यथार्थ लिखूं।
हे परमआनंद,सागरअनंता,
कामसांतक,कंस वधकर्ता
अद्भुत सौंदर्य के स्वामी,
किन शब्दों में परमार्थ लिखूं?
चेतना का चिंतन लिखूं,
आत्मा का मंथन लिखूं ,
ग्वाला लिखूं,अमृत प्याला लिखूं
या फिर मनमोहन तुमको
शाश्वत प्रीत प्रेम की मधुशाला लिखूं।
सबको मोहित और भ्रमित करने वाले,
हे निर्लिप्त योगेश्वर चेतना चिंतक,
जगदीश ऋषिकेश या संतृप्त देवेश्वर लिखूं।
देवकी नंदन या यशोदा का ललना लिखूं
मथुरा का युवराज या गोकुल का पलना लिखूं।
राधा का प्रियतम लिखूं या रुकमण का भरतार लिखूं
सत्यभामा के श्रीतम लिखूं या तुमको पालनहार लिखूं।
मधुसूदन मदनमोहन या गोप प्रिय गोपाल लिखूं
तुम सर्वज्ञ सर्वज्ञाता क्या अपने हृदय का हाल लिखूं।
हे आत्मतत्व चिंतन, हे दिव्य संजीवन या
प्राणेश्वर परमसर्वात्मा लिखूं।
अमृत जैसे स्वरूप वाले,अर्जुन के सारथी,
हे अविनाशी प्रभु मैं तेरी जय जयकार लिखूं।
क्या रिश्ता है मेरा तुमसे, है मुझसे क्या सरोकार लिखूं।
पद्महस्ता, पद्मनाभ या अमृत जल की आब लिखूं।
नीलवर्ण हे श्याम मेरे क्या नीलम सा माहताब लिखूं।
जीवन का शाश्वत लिखूं या सिंदुरी सा ख्वाब लिखूं।
नीलम शर्मा