कृष्ण
कृष्ण
अँधेरी रात थी मथुरा में जन्मा गोपाला।
तो टूटी बेड़ियाँ भी जेल का खुला ताला।।
चुराए चीर भी मटकी पे मारी कंकड़ियाँ।
बचाये लाज सभा में वो आया नन्दलाला।।
सदा पुकारता है नाम कृष्ण राधा का ।
सुनें जो वंशी मधुर दौड़ी आएं बृजवाला।।
है जग दिवाना उसी का वो राधे रानी का
रचाये रास कहें गोपियाँ भी मतवाला।।
सड़क पे भूखी फिरें और कट रहीं गउएं।
ये देख दुर्दशा क्यों चुप है उनका रखवाला।।
समर में भटका था कर्तव्यपथ से जब अर्जुन।
उठाया शस्त्र नहीं गीता ज्ञान दे डाला।।
धरा पे पाप, पतन धर्म का हुआ जब जब ।
चलाये चक्र सुदर्शन वो वाँसुरीवाला।।