कृष्णलीला
क्यूँ इतने निष्ठुर होके कान्हा ये मुरली बजा रहा ,
कैसे तेरी इन आँखों का पानी ख़ारा हो गया ।
क्यूँ विपदाओं से हृदय तेरा नहीं द्रवित हो रहा,
क्या करूणा से अब उर तेरा रिक्त हो गया ।
क्यूँ अधरों पर मंद मंद मुस्कान तू सजा रहा,
या दुनियाँ की इस प्रलय में मगन हो गया ।
क्यूँ नहीं लेता सुधि, उम्मीदों का धागा टूट रहा,
बहते अश्रु से प्रभु आँचल भी गीला हो गया ।
क्यूँ भूल के अपनी प्रभुताई कैसी लीला दिखा रहा,
लगता है सच में तू पत्थर की मूरत हो गया ।
क्यूँ दुःख के भवसागर में हर इंसा तड़प रहा,
मानों कि जैसे सुख भी अब सपना हो गया ।
तुमसे है अरदास प्रभु अब जागो अपनी निद्रा से,
जब आँख खुले देखूँ सब पहले जैसा हो गया ।।
रेखा श्रीवास्तव
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)