” कृष्णक प्रतीक्षा “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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हे ! कृष्ण -मुरारी आऊ ,
कने बाँसुरी बजाऊ ,
राधा बैसल छथि कदमक तर मे !
हे ! कृष्ण -मुरारी आऊ ,
कने बाँसुरी बजाऊ ,
राधा बैसल छथि कदमक तर मे !!
आब नहि अओताह गिरीधरधारी ,
किया बैसल छी मन हारी ,
कतो बैसल हेता यमुना क कात मे !!
आब नहि अओताह गिरीधरधारी ,
किया बैसल छी मन हारी ,
कतो बैसल हेता यमुना क कात मे !!
हे ! कृष्ण -मुरारी आऊ…………………
मनक दर्पण मे ओ किछु सोचय छथि बिचारी ,
कि प्रियतम सं हैत मिलन नऽ देखैत छथि निहारी !
मनक दर्पण मे ओ किछु सोचय छथि बिचारी ,
कि प्रियतम सं हैत मिलन नऽ देखैत छथि निहारी !!
हे ! “परिमल” दर्शन देखाऊ,
मुरली बजौने आऊ ,
आ लऽ प्रियतम के जाऊ !!
हे ! कृष्ण -मुरारी आऊ…………………
मन मे छैय एकेटा सूरत जेना चांद चकोर ,
कृष्ण -कृष्ण ओ शोर करैत छथि दर्शन दिय चितचोर !
मन मे छैय एकेटा सूरत जेना चांद चकोर ,
कृष्ण -कृष्ण ओ शोर करैत छथि दर्शन दिय चितचोर !!
हे ! गिरिधर झट दऽ चलि आऊ ,
मुरली बजौने आऊ
आ लऽ प्रियतम केँ जाऊ !
हे ! कृष्ण -मुरारी आऊ ,
कने बाँसुरी बजाऊ ,
राधा बैसल छथि कदमक तर मे !
आब नहि अओताह गिरीधरधारी ,
किया बैसल छी मन हारी ,
कतो बैसल हेता यमुना क कात मे !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
दुमका