कृषक
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कृषक
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!!श्रीं !!
मूल्य उपज का पूर्ण न मिलता, व्यर्थ परिश्रम हो जाता ,
भरे पेट दूजों का लेकिन , खुद का पेट न भर पाता ,
आँधी , ओले, वर्षा, सूखा, सबसे जूझा करता है ,
भाग्य न जाने किस स्याही से हलधर लिखवा कर लाता ।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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🪷🪷🪷