कृषक की उपज
कृषक की उपज सबसे न्यारी
है जिसमें मेहनत का श्रम कण
वह सहसा लगा रहता है
अपने श्रमकण में
है जिसका लक्ष्य निर्धारण
अपना कर्म निभाता है
प्रचंड गर्मी का दिन हो
सर्दी की शीत लहर चले
वर्षा ऋतु में बाढ़ बहें
वह मेहनतकश करता है कार्य
है जिसका लक्ष्य निर्धारण
अपना कर्म निभाता है
तू है संबल तू है भोला
हर पल रहता है व्यस्त
सुख दुख में रहता है मस्त
पूरे तन मन से उपजाता जाता है फसले
है जिसका लक्ष्य निर्धारण
अपना कर्म निभाता है
मेहनत तोड़ करता है कार्य
होती है भरमार धान की
सब कुछ पा ही लेता है आखिर में
है जिसका लक्ष्य निर्धारण
अपना कर्म निभाता है।
कवि प्रवीण सैन नवापुरा ध्वेचा
बागोड़ा (जालोर)