कृपा सिन्धु
कर जोड़ खड़ा मैं द्वार तेरे, तुम थोड़ी दया बरसाओ ना।
मैं दीन दुखी कमजोर बहुत, तुम शक्ति रूप दिखलाओ ना।।
मैं दया की तेरे भूखे हैं, तुम दया निधेय बन जाओ ना।
मैं प्रेम के तेरे प्यासे हैं, तुम प्रेम सुधा बरसाओ ना।।
दिल में है मेरे अरमान भरे, इन अरमानों पर तीर चलाओ ना।
मुझ पर तो करो बस कृपा प्रभु, तुम कृपा सिन्धु बन जाओ ना।।
मैं भटक रहा हूँ इस जग में, मुझे भव में गोते खिलाओ ना।
मैं फसा हुआ हूँ माया में, मुझे माया में फसवाओ ना।।
मैं कह ना सकूं जो ध्यान तेरा, तो ध्यान की अलख लगाओ ना।
मैं बाल तेरा जग पाल सुनो, मुझे जग की रीत दिखाओ ना।।
कर जोड़ खड़ा मैं द्वार तेरे, तुम थोड़ी दया दिखाओ ना।
सर पर है पड़ी आफत है खड़ी, तुम मुझको राह दिखाओ ना।।
मैं हिन्द देश का वासी हूँ, और हिन्दू जगाने निकला हूँ।
तुम सर पे मेरे बस हाथ रखो, मैं ही मथुरा और काशी हूँ।।
हिन्दू ना जगे जो मूद आँख, और जान-बूझकर सोया है।
तुम उसको चेत लगाओ अब, वो कुंभकर्ण बन सोया है।।
वह सत्य सनातन भूल गया, और भ्रम के जाल में खोया है।
वह धर्म मार्ग को भूल गया, और अधर्म मार्ग पर डोला है।।
वह सहनशील तो पहले था, पर कायर बन अब फिरता है।
तुम उसका कायर की कायरता को, शौर्य रूप में बदलो ना।।
तुम उसके रक्त प्रवाह में अब, थोड़ी गति तो भरदो ना।
वह जन्मजात नहीं कायर है, तुम इतना याद दिलादो ना।।
वह उन वीरों का वंशज है, जो मातृभूमि पर बलिदानी है।
वह सोई हुई एक शक्ति है, जो धर्म मार्ग से भटकी है।।
यह बात उसे में है याद दिलादू, यही मेरी अब भक्ति है….
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“ललकार भारद्वाज”