कृतघ्न अयोध्यावासी !
लानत है तुम्हें मूर्ख और कृतघ्न अयोध्यावासियो !
कई युगों से जुल्म सहे,
न अपना धर्म बचा पाए ।
डर और लालच से वशीभूत
होकर पहले मुगलों ,
फिर दुष्ट राजनेताओं के झांसे
में तुम आ गए ।
बनाया काशी विश्वनाथ ,
और श्री राम जन्म भूमि ,
फिर कृष्ण जन्म भूमि ,
ज्ञान वापी का निर्माण होना था ,
उस सच्चे हिन्दू सनातनी ने
जाने क्या क्या सोचा था,
मगर तुम उसकी श्रद्धा और
मंशा न समझ पाए ।
भूल गए थे तुम शायद वही हो न ! अभिशप्त जनता,
जिसने माता सीता पर भी
घृणित आक्षेप लगाए।
कुछ तो शर्म करो ! कुछ तो मन
को अपने टटोलो,
तुम तो पहले ही अब तक
देवी के श्राप से उबर ना पाए।
और अब तुमने सनातन धर्म
की रक्षा करने वाले को ,
अपना एक छोटा सा मत दिया ,
ना साथ खड़े हो पाए ।
तुम खुद को हिंदू कहते तो हो ,
मगर तुम हिंदू नहीं हो
जातियों में बंट गए,
कब तुम एक हो पाए ।
तुम्हें फिर भी उसने एक
करने की कोशिश की ,
मगर तुम निर्बुध्धि थे ,वही रहोगे , यही तुमने अपने आचरण दिखाए ।