कुण्डलिया- हिंदी
हर दिन हिंदी लो मना विनती बारंबार,
दिन बस एक मना इसे करो न ये उपकार।
करो न ये उपकार हिंदी सम भाषा नही,
राजभाषा है हो राष्ट्रभाषा भी यही।
कह अशोक कविराय दिलाये हक न जाये छिन,
देखकर ये खुश हों मात हिंदी भी हर दिन।।
–अशोक छाबडा
हर दिन हिंदी लो मना विनती बारंबार,
दिन बस एक मना इसे करो न ये उपकार।
करो न ये उपकार हिंदी सम भाषा नही,
राजभाषा है हो राष्ट्रभाषा भी यही।
कह अशोक कविराय दिलाये हक न जाये छिन,
देखकर ये खुश हों मात हिंदी भी हर दिन।।
–अशोक छाबडा