कुहासा
विषय – कुहासा!
विधा -कुकुभ छंद !
विधान – ३० मात्रा, १६, १४ पर यति l
कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l अंत मे २,२!
लो वह बदली शैल समाई , सुधा नीर घुले जरा सा !
श्यामल देह ढँके सब आँचल, स्थूल रूप सजे कुहासा!
बहते झरने कलकल करते , तोल रहे तल गहराई !
धुंध जमी सब अंतर खोया, भीतर बजती शहनाई !!१
विशद सघन सौन्दर्य मिटाया , एक दृश्य मन को भाता !
नवल मधुर मादक मन मोहक, विरल परत फैला छाता!
आह रूप छवि घन जाल फसी, ढुलती रस गगरी कैसे !
घनशावक अब मधु पान करें, मृदुल उठीं लहरें जैसे !!२
ऊंच नीच का सब भेद मिटा , घुले गहन अंधेरे में!
पक्के कच्चे घर नहलाये , शिशिर श्याम के घेरे में!
खोई सड़कों में किरणों सी, दौड़ रही कुछ परछाई!
विद्युत वेग थकी लगतीं हैं, वाहन गति की ऊंचाई!!३
दृष्टि पंथ सब सूना लगता, देख कुहासा सन्नाटा!
खाई गड्ढे एक हुए हैं, लगता सबकुछ भन्नाटा !
ठंडी पडती जबड़े हिलते, भीड़ बढ़ी है मधुशाला !देखें धूप और छल छाया , दूर दृश्य पर्वत माला !!४
छगन लाल गर्ग विज्ञ!