*कुल मिलाकर आदमी मजदूर है*
——————————————
कुल मिलाकर आदमी, मजदूर है।
कुछ न कुछ ढोने को वो मजबूर है।
कोई दो वक्त की भूख से लाचार है,
कोई हर घड़ी रहता बड़ा मगरुर है।
ठोकरों लाचारियों के बावजूद,
फिर भी दिल तो ताज़गी भरपूर है।
जान भी दे दे, अगर वो इश्क में,
लेकिन परखना हुस्न का दस्तूर है।
तू नसीहत इस वक्त कर ना कर,
फिर फ़ैसला तेरा हमें मंजूर है।
रोजमर्रा जिंदगी तंदूर है,
मरने को बस आदमी मजबूर है!
——————————————–
सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब