कुलदीप बनो तुम
सुन लो सुन लो जरा ऐ मेरे दोस्तों,
जिंदगी को सजा लो सदाचार से ।
वीर बनो तुम धीर बनो तुम,
उदधि जैसे मन से गंभीर बनो तुम ।
पर्वत जैसे तुम भी ऊंचाई ले आओ,
अनंत आकाश की परछाईं ले आओ।
नदी, वृक्ष जैसे परोपकारी बनो तुम,
मन में रख दया का भाव आज्ञाकारी बनो तुम।
मात- पिता के श्रवनकुमार बनो ,
गोविंद से भी गुरु का सम्मान करो तुम।
एक ऐसी प्रज्वल्यमान दीप बनो तुम,
कृपासिंधु, पुरुषोत्तम ,कुलदीप बनो तुम।
अनामिका तिवारी” अन्नपूर्णा “✍️✍️