कुर्सी ही बस त्रेता है
#रस – रौद्र रस
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?️कुर्सी ही बस त्रेता है?️
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कपट द्वैष ईर्ष्या के युग में, कुर्सी ही बस त्रेता है।
कुछ पैसों में गद्दी बिकती, मतदाता विक्रेता है।।
स्वार्थ साधना कर्म हीनता, लोकतंत्रक नीव हीली।
आज सहादत चीख रही है, मुक्ति उनको कहा मिली।।
मार रहे जो निरपराध को, मारो इन हैवानों को।
राष्ट्र अस्मिता के भक्षक जो, मारो उन सैतानो को।।
कुछ पैसों के खातिर इनको, मत जो अपना देता है।
कपट द्वैष ईर्ष्या के युग में, कुर्सी ही बस त्रेता है।।
आतंकवादी नक्सलवाद, सब इनके ही प्यादे हैं।
इनके ही उँगली पर नाचें, सब इनकी औलादें हैं।।
सत्ता खातिर हर दिन हर पल, ताण्डव नग्न दिखाते है।
संबिधान की बोटी बोटी, काट काट खा जाते है।।
बात करें नारी रक्षण की, ये अस्मत के क्रेता हैं।
कपट द्वैष ईर्ष्या के युग में, कुर्सी ही बस त्रेता है।।
आज सिंहासन पर बैठे हो, भूखी जनता याद नहीं।
तुम जैसे गद्दारों से अब , हिन्दुस्ताँ आबाद नहीं।।
शोणित दे जो दी आजादी, देख तुझे रोता होगा।
इस आजादी पर अपना वो, आपा भी खोता होगा।।
पूछ रहा बलिदानी तुझसे, आज उसे क्या देता है।
कपट द्वैष ईर्ष्या के युग में, कुर्सी ही बस त्रेता है।।
——–स्वरचित, स्वप्रमाणित, अप्रकाशित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार