कुर्सी बचाने में ही, सारी लगी सियासत!
गज़ल
काफ़िया- अत
रदीफ़- बिना रदीफ़
मफ़ऊलु फ़ाईलातुन मफ़ऊलु फाइलातुन
221……2122…….221…….2122
कुर्सी पे जो हैं बैठे, उनकी हुई रियासत!
कुर्सी बचाने में ही, सारी लगी सियासत!
जनता औ देश जाए,दोजख में क्या पड़ी है,
अपना ही पेट भरने की, हो रही कवायत!
जो खा गये हैं औरों के छीन कर निवाले,
सेवा दया धरम की देते हैं वो नसीहत!
अपना चमन उजड़ता था, वो बचा न पाये,
दुनियाँ बचाने की वो,करते दिखे हिमाकत!
वो देश पर फिदा थे, घर बार छोड़ कर,
करते रहे ता्जिंदगी, अंग्रेजो् से बगावत!
कितने फना हुए हैं, प्रेमी की इक हॅंसी पर,
वो खुशनसीब पाए हैं, दिल मिली मुहब्बत!
…… ✍ प्रेमी
14 जून, 2021