कुर्सी का खेल
अतीत विगत समय बदला ,
कुछ न बदला तो वह है ,
रक्त रंजित कुर्सी का खेल ,
पहले सिंहासन तो अब कुर्सी ।
जालियावाला बाग जैसे हत्याकांड ,
इसी सिंहासन के सबब हुआ था ,
अभी हो रहे दंगे – फसाद की ,
मूल जड़ ये कुर्सी की सत्ता है।
इनकी निजी वैमनस्यता को भी ,
राजनीती में संयुक्त कर देते है ,
निर्वाच्य मनुजों को आयुध बना ,
अपना वैमनस्यता अवलोचते हैं।
इस कुर्सी के मनोहर खेल में ,
प्रचुर निर्दोष मनुज मारे जाते हैं ,
कपटहीन निर्वाच्य जनसमुद्र का ,
सकल नफा उठाते राजनीतिक है।
कब बंद होगा कुर्सी का खेल ?
कब हम सब होंगे एक समान !
निर्वाच्य जनता का होगा प्रसार ,
और मिटेंगी रक्त रंजित का खेल।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या