कुरुक्षेत्र में द्वंद का कारण
पांडू के बेटे पांडवों पर हो रहे अत्याचार की एक कहानी है,
महाभारत का कारण बना जो वह बात अनंत की जुबानी है।
हस्तिनापुर की हिफाजत की खातिर उनका सबकुछ न्योछावर था ,
महाभारत हुआ सकुनी ही इसका कारण था
सकूनी अपने खास मिसन के लिए कौरवों के साथ आया था,
लेने आया अपने पिता का बदला, इसलिए कौरवों पांडवों में युद्ध करवाया था,
था पता सकुनी को कौरवों पांडवों में, कौरव कभी न जीत सकेंगे,
इन सब बातों को लेकर अपना बदला पूरा कर पाया था।।
पांडव के साथ वही हुआ जो नियति में उनके लिखा था,
सकुनी की पासा, दुर्योधन के पछ रही,
युधिष्ठिर ने फेका पासा, सबकुछ अपना हारा था,
राज पाठ सब लगा दांव पे,पांचाली का सौदा होना था,
अगली चाल में रूह कांपी पांचाली को भी खोना था,
दुर्योधन के कहने पर,
द्रौपदी का बाल पकड़कर , दुशासन सभा में लाया था,
हसीं पड़ेगी इतनी भारी, द्रौपदी ने न सोचा था
आई जब बारी चीर हरण की, सब बैठे देखे थे,
किसी ने न न्याय किया, गंधर्वी तक न रोकी थी,
धृतराष्ट्र पुत्र मोह में, अपना सबकुछ गवाया था,
भीष्म, द्रोण, कर्ण सब सभा में बैठे, किसी तक ने न रोका था,
अंखियां में लिए आंसु पांचाली ने सारी सभा को ध्धिकारा था,
कोई न रहा बचाने को, सखा श्री कृष्ण को पुकारा था,
कान्हा ने स्वयं दर्शन देकर द्रौपदी का साहस बढ़ाया था,
चीर हरण में कान्हा ने ही चीर को बढ़ाया था,
रहे सब अकिंचन, यह सब सखा कृष्ण का ही माया था।
नारी की इस अत्याचार पर पांडवों को मिला बनवास रहा।
जिस द्रौपदी ने भरी सभा में खून के आंसु रोए थे,
उस पांचाली ने दुशासन के रक्तों से बाल धोएं थे,
अब आती है युद्ध की बारी खड़े सब महावीर ही थे,
सकुनी ने फिर चला चाल, गए श्री कृष्ण के पास खड़े,
मांग के लाए श्री कृष्ण की सेना उसमे न बलराम पड़े,
दुर्योधन के संग, कर्ण भीष्म द्रोण खड़े,
पार्थ अर्जुन के संग, सारथी बन माधव साथ राम भक्त हनुमान पड़े
युद्ध शुरू होने का बिगुल बजा, अगले पल सब रण में थे,
सगे संबंधी को देखकर अर्जुन करुणा की छण में थे
करुणा में पार्थ को माधव ने गीता का उपदेश दिया,
यह युद्ध है धर्म का इसमें न कोई अन्याय है
यह युद्ध है धर्म का इसमें न कोई अन्याय है।