” कुरीतियों का दहन ही विजयादशमी की सार्थकता “
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: 【- ” कुरीतियों का दहन ही विजयादशमी की सार्थकता ” -】:
वसुधैव कुटुम्बकम का हितैषी हमारा राष्ट्र भारत, प्रेम एवं अहिंसा का संदेश सनातन काल से देता रहा है ,शत्रु के साथ दया एवं शरणार्थी को आश्रय एवं सुरक्षा प्रदान करना ,हमारा ध्येय रहा है । वर्तमान में समाज गौतम एवं गाँधी के सिद्धांतों को विस्मृत कर चुका है । कुरीतियों का अजगर फुंफ़कार रहा है , आतंकवाद एवं भ्रष्टाचार अपने चरम पर है । बुराई का
दशानन अपने- लोभ , दंभ , मोह , काम , घृणा , ईर्ष्या , जुगुप्सा ,वैमनस्य ,अलगाव एवं आतंक रूपी दस चेहरों से अट्टहास कर रहा है । विजयादशमी , बुराई पर अच्छाई की अखंड विजय का प्रतीक है जिसमें प्रतिवर्ष लंकेश के पुतले का प्रतीकात्मक रूप से दहन कर हम विजय का शंखनाद तो करते हैं परंतु हम सभी में विद्यमान बुराइयों का दहन करना क्यों भूल जाते हैं ? सामाजिक कुरीतियों के नाम पर आज भी नारी शक्ति का शोषण हो रहा है ,शक्ति की प्रतिरुपा को पग-पग परीक्षा के दौर से गुज़रना पड़ रहा है । आनर -किलिंग जैसे जघन्य अपराध ,झूठी प्रतिष्ठा को बचाने के चक्कर में हो रहे हैं जो सुसभ्य समाज के उजले चेहरे को कलंकित और दाग़दार कर रहे हैं । प्रतिवर्ष हम विजयादशमी पर रावण का प्रतीकात्मक वध तो कर लेते हैं परंतु हमारे परिवेश को उन बुराईयों से मुक्त नहीं करा पाते । हमारे अंतर्मन में छिपे लंकेश का संहार क्यों नहीं करते ?
पर्व की सार्थकता तभी है जब सकारात्मक संदेश का प्रचार हो , ज्ञान का आलोक समूचे राष्ट्र को आलोकित करे ।
विजयादशमी का पर्व तभी सार्थक होगा जब हम स्वयं की बुराइयों पर विजयश्री प्राप्त कर लेंगे । समाज को कुरीतियों से मुक्त कराना होगा तभी दशहरा महापर्व अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकेगा ।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , “काज़ीकीक़लम”
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , इकबाल कालोनी , अहिल्या पल्टन
इंदौर , जिला – इंदौर , मध्यप्रदेश