कुम्हार की माटी
कुम्हार की माटी
एक दिन अचानक माटी से मुलाकात हो गई,
बातों ही बातों में माटी कटु सत्य कह गई।
मैंने कहा बहन बड़ी उदास दिखाई दे रही हो,
सब ठीक तो है क्यों आंँखें भरी बैठी हो?
भरे गले से वह बोली, मैं तो माटी हूँ माटी ही रहूँगी,
पर कुम्हार को देखते ही उदास हो जाती हूँ।
एक जमाना था सामान हाथों हाथ बिकता था,
आज मटकों के ढेर को देख दिल रोता है।
बड़े श्रम से वह मुझे रोंदकर तैयार करता है,
सारा दिन मिट्टी सने हाथों से चीजें तैयार करता है।
घड़े,सुराही,गमले,दीए ही नहीं बनाता,
सुंदर मूर्तियाँ व खिलौने भी बनाता है।
एक बात और…….
चाहे कितने भी बाजार में ठंडे पेय मिल जाएँ,
पर घड़े ,सुराही का मुकाबला न होए।
गुरु शिष्य की तरह मेरा कुम्हार से है रिश्ता,
कुम्हार की थाप मुझ माटी को देती विशेषता।
आधुनिक युग ने सब कुछ बदल दिया,
मेरे सृजनकार को मोहताज कर दिया।
आज लोग प्लास्टिक को अपना रहे हैं,
मेरी आत्मा को भी प्रदूषित कर रहे हैं।
बहुत कम लोग अब कुम्हार के बर्तनों को ले रहे हैं,
वार-त्यौहार,दिवाली आदि पर खरीद रहे हैं।
मटको का स्थान वाटर कूलर ने ले लिया,
मटका बेचारा ग्राहक का इंतजार कर रहा।
घड़े का पानी ,सब जानते हैं सब मानते हैं,
बस खरीदने के आलस में फ्रिज काम लाते हैं।
असली प्यास तो घड़े का पानी ही मिटाता है,
ना ही कभी गला खराब होने का डर रहता है।
तुम शिक्षिका हो मेरा यह संदेश सबको दे देना,
कुम्हार की रोजी-रोटी बनी रहे इस पर ध्यान देना।
मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है,
कुम्हार के माध्यम से यह संदेश सबको देना।
कच्ची मिट्टी से घड़ कर सुंदर चीजें बनाता है,
भट्टी में तपा पक्का भी बनाता है।
मैं तो मिट्टी हूँ , मिट्टी में मिल जाऊंँगी,
अपना जीवन कुम्हार के नाम कर जाऊँगी।
मेरे जीवन की सार्थकता मेरे पिता कुम्हार हैं,
उनका जीवन सफल रहे यही प्रभु से दुआ है।
उदास मत हो बहना करती हूँ यह वादा,
बच्चों के माध्यम से घर-घर पहुँचेगा यह संदेशा।
नीरजा शर्मा