कुम्हार और मिट्टी
कुम्हार और मिट्टी
#दिनेश एल० “जैहिंद”
चकित चाक पे चिकनी मिट्टी
चकराया चतुर कुम्हार ।।
तू तो लागे मुझे ईश्वर सरीखा
तू भी मूरति गढ़े हजार ।।
कहा कुम्हार कान में माटी से
मत बनाओ मुझे भगवान ।।
मैं गढ़ूँ सिर्फ क्षणिक खिलौने
वो तो गढ़ता जिंदा इंसान ।।
मेरी तुलना भगवन से करके
मत घटाओ राम का मान ।।
राम-काज सर्वोपरि है जग में
राम-नाम है जग में महान ।।
मैं अनबोली साकार खिलौने
बोली माटी अबकी हँसकर ।।
मैं आती हूँ सबके काम हमेशा
बच्चे आनंदित मुझसे खेलकर ।।
वाचाल मानव हैं खुदगर्ज बड़े
करे जुबां का गलत व्यवहार ।।
बात-बात में वे बात बिगाड़ते
दुखी करें वे सारा घर-बार ।।
++++ मौलिक +++
दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 08. 2017