कुफ़्रनामा
मज़हब सिखाने आया है
मुझे ऐ नासमझ वाइज
अगर सिखा सके तो पहले
मुहब्बत उसे सिखा दे!
तेरे ख़ुदा से मुलाक़ात तो
क़यामत के रोज़ होगी ही
उससे पहले मुझे मेरी
दिलरूबा से मिला दे!
मुझे वैसे भी क्या करना
अभी मस्ज़िद में जाकर
मेरे लिए उसके दिल में
थोड़ी-सी जगह बना दे!
एक मुद्दत से प्यासा हूं
मधुशाला में बैठकर मैं
अपनी शरबती आंखों से
काश, वह दो घुंट पिला दे!
Shekhar Chandra Mitra
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