कुपंथी औलाद
कुपंथी औलाद
212 212 212 212 , 212 212 212 212
आज के दौर में पुत्र माता पिता को, सदा दे रहे गालियां घात की।
वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।
ढा रहे वो सितम और करते जुलम
मारते मातु को और धिक्कारते।
डांट फटकार कर एक हैवान बन
वृद्ध माँ बाप को घर से निकालते।
नौ महीने तुझे गर्भ में माँ रखी, उंगली उसकी पकड़ तू चला हाँथ की।
वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।।
भूल आये कहीं प्यार वो बाप का
मातु की मामिता भूल आये सदा।
तू जरा शर्म कर क्यों बने जानवर
दूध का कर्ज तूने किया ना अदा।।
जो संजोये थे सपने औलाद से, आस टूटी है उनके सभी ख्वाब की।
वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।।
आस टूटी पिता की बढ़ी पीर है
सोंचता ये कुपुत्र मुझे है मिला।
प्यार से जो तुझे एक जीवन दिया
है मिला आज मुझको उसी का सिला।।
है कलेजा फटा वृद्ध माँ बाप का, देख करतूत ऐसी सन्तान की।
वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।
रो रही आज माता सितम ढा रहे सुत
न देगी कभी जन्म फिर पुत्र को।
संपदा आज लेके करें सुत यही
मारते हैं सदा काँपते बाप को।।
छोड़ आते उन्हें वृद्ध आश्रम कहीं, मानते हैं नहीं बात वो बाप की।
वो नहीं जानते नाज से थे पले, मन्नतों से हुए गर्भ से मातु की।।
■अभिनव मिश्र”अदम्य