कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
हम बच्चों को हर इक सपना, कैसे पूरा करना
अटल रहो अपनी राहों पर, पर्वत ये सिखलाते
सरल बहो नदिया के जैसे, धारे ये बतलाते
सागर से हम सीख रहे हैं, खारेपन से लड़ना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
चलने वाले चलते जाते, ठोकर पर कब रुकते
लद जाते हैं पेड़ कभी जब, देखा उनको झुकते
सीख रहे हैं ये सारे गुण, अपने अंदर भरना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
देख रहे हैं दिन प्रतिदिन हम, मौसम रंग बदलते
पीले पत्ते झरते हैं जब, तब नव पात निकलते
इनसे जाना आशाओं के, दीप जलाये रखना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
नन्हें नन्हें पंछी भी जब, ख़ूब उड़ाने भरते
उन्हें देखकर हम उड़ने के, सपने देखा करते
उनकी हिम्मत देख-देख कर,भूल रहे हम डरना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
सूरज राजा रोज निकलते , सही समय छुप जाते
और समय पर चंदा तारे, आसमान में आते
सीख रहे हैं इन सब से हम, काम समय पर करना
कुदरत से हम सीख रहे हैं, कैसा हमको बनना
27-12-2022
डॉ अर्चना गुप्ता