कुदरत के साइंटिस्ट
माँ – माँ देखो बाहर वाले कमरे के रौशनदान में चिड़िया अपना घौंसला लगा रही है मीता ने जोर – जोर से जोर से माँ को आवाज लगाई । हाँ बेटा उसको अंडे देने होगें ये पक्षी भी अपना ठिकाना ढ़ूंढ लेते है…बेटा एक बात का ध्यान रखना शाम से पहले दरवाज़ा मत बंद करना , माँ ने उसके कौतूहल को शांत करते हुये कहा । दो – तीन दिन की लगातार मेहनत के बाद चिड़िया ने अपना घोसला तैयार कर लिया लेकिन ये क्या ? चौथे ही दिन इतनी मेहनत से बनाये अपने घौंसले को तोड़ कर कमरे में गिरा दिया , ये देख मीता ने चिल्लाते हुये माँ को बुलाया माँss माँss चिड़िया ने अपना घौंसला गिरा दिया…. माँ तेजी से चलते हुये आईं और टूटे घौंसले को देख कर बोलीं ‘ हे भगवान ! क्या विपदा आने वाली है ‘ ये सुन मीता बोली माँ तुम ये क्यों बोल रही हो ? बेटा इस पशु – पक्षियों को आने वाली विपदा का अहसास पहले से ही हो जाता है । शाम को फोन की घंटी घनघनाई…हैलो…हैलो…हाँ मीना ( मीता की बड़ी बहन जो घर कॉलेज दूर होने की वजह से शहर के ही हॉस्टल में रहती है ) की माँ बोल रही हूँ… क्या ? मीना को ‘ चिकन पॉक्स ‘ हुआ है ? अच्छा मैं आ कर उसको घर ले आती हूँ । मीता इधर आना बेटा…देख मैं और तेरे पापा हॉस्टल जा रहे हैं दीदी को लेने उसको ‘ चिकन पॉक्स ‘ हुआ है उसका कमरा ठीक कर देना बहुत फैला रखा है तूने । माँ – पापा के जाते ही मीता सोचने लगी पशु – पक्षियों को आने वाली बिमारी , प्रलय , मृत्यु सबका आभास पहले से हो जाता है तभी तो चिड़िया ने अपना बसेरा उजाड़ दिया , ये तो वाकई साइंस से भी आगे कुदरत के साइंटिस्ट हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 19/05/2021 )