कुदरत के रंग…..एक सच
हम सभी कुदरत और भाग्य समझते हैं और जीवन के साथ-साथ हम पहचानते हैं कि नाम, दौलत ,शोहरत न कोई लेकर आता है न कोई लेकर जाता है बस हमारे मन की भावों में अपना- अपनी तेरा- मेरी इस तरह की मानवता की सोच हमेशा रहती है। और हम सभी एक दूसरे को अपनी मन इच्छाओं से प्रतिस्पर्धा रखते हैं जबकि हमारे शीर्षक के अनुसार मेरा भाग्य कुदरत के रंग से जुड़ा एक सच रहता है जो की हम सभी का एक सच है हम सभी अपना हर पल हर क्षण की सोच रखते हैं कि वह हम जी रहे हैं या हम इस समय को अपने काबू में रखकर कर रहे हैं परंतु यह एक हमारी भूल है वैसे तो हम सभी जानते हैं परंतु हम दौलत की चमक और अपने सुडौल स्वस्थ शरीर के घमंड और गर्व पर हम महसूस करते हैं कि जो कुछ कर रहे हैं वह सब हम कर रहे हैं परंतु शायद हम इंसान अपने कर्म और भाग्य को भूल जाते है। कि कुदरत भी एक सच है।
रानी एक सुंदर और सुशील अनाथ बालिका थी उसे यह नहीं पता था कि उसका बचपन और उसका जन्म किस हालातों में हुआ और जब वह जवानी और विवाह की उम्र के साथ जीवन के कर्म क्षेत्र में कदम रखती है। तब भी उसे जीवन के उतार चढ़ाव के विषय में जानकारी नहीं थी। रानी जिस अनाथ परिवार अनाथ आश्रम से जुड़ी होती है उसे तो बस उसी के अंदर की जिंदगी और जीवन मालूम होता है।
मेरा भाग्य कुदरत के रंग जो कि एक सच है परंतु रानी तो जिस परिवेश में पलकर बड़ी हुई थी। उसे तो उसे परिवेश का भी कुछ अच्छा अनुभव नहीं था क्योंकि जीवन का कटु अनुभव उसके साथ था। परंतु है लोगों के आवागमन से इतना जरूर समझ चुकी थी कि दुनिया में अच्छे लोगों की गिनती बहुत कम है। और उसकी नजर में अच्छे लोग भी वही थे। क्योंकि बचपन से ही उसे लोगों का एहसास था परंतु वह अनाथ और परिवेश वह जहां में रहती थी उसके शोषण या सहयोग को वह कभी-कभी आंखों में आंसू भरकर ईश्वर से पूछती थी। हे ईश्वर क्या मेरा भाग्य और कुदरत के रंग जीवन के संग ऐसे ही रहेंगे । जो लोग वहां आते थे और अपने साथ अपने बच्चों को भी लाते थे और वह अपने बच्चों को यह कहते थे कि देखो बेटा यह बच्चे हैं उनकी मम्मी पापा नहीं है और देखो कैसे समझते रहते हैं उसे लोगों की यह बातें सोच कर और सुनकर मुझे लगता था कि माता-पिता क्या होते हैं और मैं अपने मन के किसी कोने में अपनी मन भावन को लेकर सोचती थी। क्या रानी का अर्थ भाग्य हीन होता हैं। पता नहीं ऐसी बातों को सोचते सोचते कब मेरी आंख लग जाती थी और कब मुझे डंडे की थाप से जगाया जाता था। पता नहीं सच तो में सोच और कह भी नहीं पाती थी।
क्योंकि सच सोचने का समय ही कहा था। जीवन के अंतर मन को हम अपने ही मन में अपने से ही पूछती थी। कि कभी हमें भी अपनी मन भावनाओं के साथ स्वतंत्रता मिलेगी। मेरा भाग्य कुदरत के रंग मेरा भाग्य और मैं यही सोचतीं थी। पता नहीं जीवन में हमारा भाग्य और हमारी राहे कहां है। रजनी एक कोने में खड़ी हुई डरी सहमी सी अपने मन में ही सोच और होंठों के साथ कुछ बुद्दबुदा रही थी। अचानक की उसके गाल पर एक चांटा सा पड़ता है और कड़क आवाज आती है कामचोर हो गई है बहुत समझी वह जो बर्तन पड़े हैं उनको कौन साफ करेगा तेरी मां या तेरा बाप जा जाकर बर्तन को रगड़ नहीं तो एक और चांटा पड़ेगा। और कहने के साथ चांटा जड़ दिया जाता हैं। और बेचारी रजनी अबोध 9 साल की उम्र मैं जीवन की सजा या जीवन का प्यार या जिंदगी जीने की राह इन शब्दों के तो शायद उसे मायने या अर्थ ही नहीं मालूम थे। आंखों से आंसू टपकाती हुई। जहां बर्तनों का अंबार लगा था वह वहां पहुंच जाती है और नन्हे छोटे हाथों से बड़े-बड़े बर्तनों को साफ सफाई करने लगती है। क्योंकि यह दिनचर्या तो वह है जब 5 साल की हुई थी। तब से यही करती आ रही थी उसके मन में जीवन के अंत की इच्छा भी होती थी। परंतु उसे समझ नहीं आता था कि जीवन का अंत भी कैसे करें। क्योंकि उसे यह भी नहीं मालूम था कि जो सांस उसकी चल रही है उसे रोका कैसे रजनी इतनी छोटी उम्र में ही बड़ों की बातें समझने लगी थी । और जिस परिवेश में वह रहती थी वहां उसे केवल एक ही चीज़ सीखने में मिली थी। झूठा दिखावा भुखा रहना और चोरी करने के लिए सोच सच तो यही है कि हमारा वातावरण ही हमें बहुत कुछ सीखा देता है। ऐसा ही कुछ रानी के साथ था। परंतु बेचारी रानी क्या सोच सकती थी । न उसकी सोच में कुछ था ना ही उसके बस में कुछ था । और जीवन के खेलने की उम्र में वह बहुत कुछ सीख चुकी थी। शायद हम अनाथ बच्चों की जिंदगी कुछ ऐसी होती है और वह अपने बर्तनों को मांझने के लिए शुरू हो जाती है तब एक और आवाज आती है रजनी ओ रजनी की आवाज के साथ एक मैडम दीपा आकर खड़ी हो जाती है यह बर्तन कब तक मंझ जाएंगे कब तक साफ हो जाएंगे। आप देख रही हैं मैं कर तो रही हूं और इतना कहने पर उसे एक और थप्पड़ का इनाम मिलता है। साथ ही उसे शब्दों का अर्थ भी मिलता है मुझसे जवान लड़ाती है। और बेचारी रजनी आंखों से आंसू टपकाते हुए बर्तनों को मांझने लगती है। और रजनी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करती है हे ईश्वर मेरा भाग्य और कुदरत के रंग ऐसे ही जीवन कट जाएगा । और वह बर्तन मांझते हुए। आंखों में आंसू भरती हुई। बर्तन मांझते मांझते कब उसकी आंख लग जाती है। बेचारी अबोध नन्ही सी जान कमजोर और थकी रहती थी ।
बस केवल अनाथ परिवेश में काम ही काम और खाने के नाम पर आधा पेट खाना मिलता था। रानी सोचती हैं। कि मेरा भाग्य कुदरत के रंग एक सच तो यही है और नींद कब आ जाती है बेचारी कमजोरी और थकान से लाचार रानी का जीवन तो यही था । सुबह रात दिन का उसे कुछ मालूम ही न था न रात के सितारे न दिन की पहचान क्योंकि वह कभी परिवेश से बाहर ही नहीं आती थी। और रजनी बस सोचती हुई अपने ख्यालों में खो जाती हैं।
******************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र