कुदरत की संभाल करो …
सुन ए इंसान !अगर तुम खुद मुख्तारी नही छोड़ सकते,
तो खुदा से भी रहमत की कोई उम्मीद नहीं कर सकते।
तुम बरबाद करते रहे यूं ही उसका खूबसूरत गुलिस्तान,
तो तुम भी अपनी खुशियों का चमन नही बसा सकते ।
यह जमीन, यह आसमान ,और नदियां सब बर्बाद कर ,
वापस तो इनको कभी हासिल कभी नहीं कर सकते।
यह पहाड़ ,पेड़ पौधों और जंगलों ने क्या बिगाड़ा था,
तो कुदरत के गुस्से से यह तुम्हें कभी नही बचा सकते ।
तुमने बेजुबानों को भी न बख्शा उनका खून बहाया,
इन मासूमों की आहोंं से कभी तुम बच नहीं सकते।
खुदा के होते हुए भी तुम क्यों इसके शहंशाह बन बैठे,
तुम अपनी हद में रहो इस हद से आगे नहीं बढ़ सकते
याद रखो ! गर तुमने अपनी नफरमानियो को न रोका,
तो तुम आनेवाली नस्लों को भी बचा नही सकते ।
इसीलिए अब खबरदार हो जाओ ,सुधार जाओ तुम ,
कुदरत की हिफाजत किए बिना जिंदा नहीं रह सकते।