कुदरत की करिश्मा
कुदरत की करिश्मा
// दिनेश एल० “जैहिंद”
कुदरत की करिश्मा अजीब है ।।
कोई अमीर तो कोई गरीब है ।।
कोई एक निवाले को तरसता,,
तो कोई यहाँ अन्न का मुनीब है ।।
कहाँ सो गए ये सियासी लोग ।।
कहाँ गुम हो गए अमीर लोग ।।
क्या उनके दिलों में दया नहीं,,
देख ऐसा मंजर वे पिघले नहीं ।।
जीवन जीने की कैसी तरकीब ।।
न तन पे कपड़े न धन है करीब ।।
दाने-दाने को तरस रहे ये बच्चे,,
अंदर धँसे हैं इनके पेट अजीब ।।
देश की जनता ऐसे भी जीती हैं ।।
हर पल वे जख्म अपने सीती हैं ।।
कौन रहमदिल हैं कौन रहनुमा,,
ऐसे ही गमों के वे जाम पीती हैं ।।
न सिर पे छत न आस किसी की ।।
पास जो हाथ दो आस उसी की ।।
है पेट पूजा रूखा-सूखा भोजन,,
इन्हें मिली सौगात मुफलिसी की ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
10. 11. 2017