कुत्ते भौंक रहे हैं हाथी निज रस चलता जाता
कुत्ते भौंक रहे हैं हाथी निज रस चलता जाता।
कौन मूर्ख है,आप बताओ,किसका बल से नाता।
श्वान कह रहा मेरे डर से भाग रहा है मोटा।
मार झपट्टा खा जाऊँगा,समझ न मुझको छोटा।
तुम बतलाओ,किस को समझें,अहंकार का छाता।
कुत्ते भौंक रहे हैं हाथी निज रस चलता जाता।
बीस कदम तक भौंक कह रहे किया उसे आहत है।
समझ रहे हैं सिंह स्वयं को कुत्तों की यह लत है।
कहिए श्री मन्, कौन भ्रमित है, किसे कहूँ मैं ज्ञाता।
कुत्ते भौंक रहे हैं हाथी निज रस चलता जाता|।
पूँछ हिला कर बैठ गए हैं अपने घर के आगे।
राष्ट्र विजेता बने बताओ या फिर भ्रम के धागे।
आप कहाँ हो निज को जानो, ज्ञानी या अज्ञाता।
कुत्ते भौंक रहे हैं हाथी निज रस चलता जाता।
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●उक्त रचना को साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से प्रकाशित “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत कर दिया गया है।
●उक्त रचना “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण में पृष्ठ संख्या66 पर पढी जा सकती है।
● “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक
कवि/साहित्यकार