कुण्लिया छंद
ईर्ष्या उर मत पालिये, हरती बुद्धि विवेक।
बात सत्य यह जानिये, देती कष्ट अनेक।।
देती कष्ट अनेक, मनुज की मति हर लेती।
सुपथ सदा ही दूर, हमें यह कुपथ ही देती।।
कहै सचिन कविराय ,बसै कब उस घर तिरिया।
मन जिनके हर वक्त, रहे ईर्ष्या ही ईर्ष्या।।
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”