कुण्डल / उड़ियाना छंद
कुण्डल एवं उड़ियाना छंद
कुण्डल/उड़ियाना छंद [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं,
12 – 10 पर यति होती है
मापनी- कुंडल – 633 , 6 2 2
मापनी – उड़ियाना 633 , 6 112
प्रत्येक चरण में पहली यति से पहले त्रिकल आवश्यक है
उपरोक्त दोनों छंदों में कुल चार चरण होते हैं,तुकांत दो-दो चरण या चारों भी एक से हो सकते है
कुंडल छंद
दर्प सर्प जहां कहीं , मानव में रहता |
कटुता की बात सदा, वचनों से कहता ||
सम्मुख भी यदा कदा ,आ. जाए नहला |
सभी काम छोड़ तभी, तुम मारो दहला ||
मद से भी भरा जहाँ , चलता है हाथी |
उसको भी वहीं छोड़ , भागें सब साथी ||
दिखता है दर्प जहाँ ,तब सब जन भागें |
दूर-दूर सभी रहे , चुपके से त्यागें ||
(मुक्तक के लिए – रहते है दूर-दूर , मिट जाती थाथी )
दिखती है खार जहाँ , समरसता रोती |
लोगों के बीज वचन , कटुता है बोती ||
लोगों के हाल सुने , हमने भी लेखे |
हर पल में खीज रहे , खोट साथ देखे ||
(मुक्तक के लिए – हर पल में खीज रहे ,खोट साथ होती ||
उड़ियाना छंद
कटुक वचन जहाँ सुने, आता है सहना |
हँसकर ही सुनें कहें , सदा सहज रहना ||
धार नेह भी अपनी , सदा खर्च करना |
रार खार भी न रहे , रुकता है जलना ||
(मुक्तक के लिए तीसरी पंक्ति –
(अपनी भी धार नेह , सदा खर्च करिए )
© सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य, दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर