कुण्डलिया
कातिल नाबालिग़ मगर, घातक उसकी सोच।
बलात्कार कर क्रूरतम, अंतड़ियों को नोच।
अंतड़ियों को नोच, राक्षसी जागी ज्वाला।
फाड़ दिया गुप्तांग, रॉड लोहे की डाला।
थी वयस्क ही सोंच, मरी जो लड़की तिल तिल।
फाँसी ही हो शीघ्र, आज बालिग वह कातिल।
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’