कुण्डलिया
मँहगाई नकदी रहे, होती नहीं उदार |
इसका कब शनिवार या, होता है रविवार ||
होता है रविवार, जहाँ इक छुट्टी का दिन,
वहीँ पसारे पैर, और ले बदले गिन गिन,
मैं हूँ कवि मतिमंद, न जाना इसको भाई,
फूली है इस देश, सदा ही यह मँहगाई ||
~ अशोक कुमार रक्ताले