कुण्डलिया
कटी पेड़ की छाँह
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शहरों-शहरों गाँव में, कटी पेड़ की छाँह
नहीं पकड़ती बाँह अब, किसी बाँह की बाँह
किसी बाँह की बाँह, लोग राजा हैं मन के
अब घमंड में चूर, सभी मानव हैं धन के
‘सहयोगी की सोच, न पानी नहरों-नहरों
सूख गये नल-कूप, प्यास है शहरों-शहरों
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ