कुण्डलिया छंद
जागो प्रियवर मीत रे, कर लें रवि से प्रीत।
क्या रक्खा उतपात में,छेड़ें म्रिदु संगीत।
छेड़ें म्रिदु संगीत,रहें हर पल आनंदित।
बहें हवा में नहीं,करें मत दुख आमंत्रित।
कहें ‘सहज’ कविराय,मुसीबत से मत भागो।
रात गई है बीत,सो चुके अब तो जागो।
@डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
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