कुण्डलिया छंद
गुरु कुल से ÷
कुण्डलिया छंद
दोहा + रोला
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सुअर गंदगी चाहता, लेय सूंघकर जान ।
कहाँ पड़ी कैसी पड़ी,साफ करे मैदान।
साफ करे मैदान, किसी के मन नहिं भावे ।
नहीं कभी संवाद, सिर्फ खाने आ जावे ।
बता गलतियाँ रहे,करेगा कौन बंदगी।
इसी तरह कुछ लोग,मिले ज्यों सुअर गंदगी।
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बड़े नाम के कवि करें,गलती हजम पहाड़।
वाहवाह की निकलतीं नदियाँ
लेकर बाढ़।
नदियाँ लेकर बाढ़,ऐब सारे बह जाते।
कौन कहे सच बात,कोई भी न कह पाते।
लघु के पीछे पड़ें ,मनीषी ,बिना काम के।
सही छंद को सही , कहें न बड़े नाम के।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
1/11/22