कुण्डलिया छंद
कुण्डलिया छंद
सृजन शब्द–*चोरी*
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चोरी माखन की करे, कान्हा मटकी फोड़।
मात यशोदा डांटती, देती कान मरोड़॥
देती कान मरोड़, मन में खूब मुस्काये।
अर्ज करे कर जोड़, लाल मातु को मनाये॥
कहे शील कविराय, बंधी ममता की डोरी।
कान्हा मटकी फोड़, करे यूँ माखन चोरी॥
राधा करती स्नान है, मिलकर सखियों संग।
लाज हया को छोड़ती, बिना वसन सब अंग॥
बिना वसन सब अंग, गहरी डुबकी लगाऐ।
देख रहे चितचोर, चोरी वस्त्र कर जाऐ॥
कहे शील कविराय, स्नान छूटा फिर आधा।
अर्ज करे कर जोड़, सखियाँ संग ही राधा॥
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश🙏