कुण्डलिया ( आजादी की राह)
कुण्डलिया- १
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प्राणों से रौशन हुई, आजादी की राह।
हँसी खुशी इस हेतु ही, तज डाली हर चाह।
तज डाली हर चाह, तभी आजाद हुए हम।
उनकी स्वर्णिम याद, कर रही हर आंखें नम।
कह सुरेन्द्र यह बात, मुक्त है देश का गगन।
धन्य राष्ट्र की धूल, हुई प्राणों से रौशन।
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कुण्डलिया-२
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वर्तमान है बढ़ रहा, आजादी की राह।
तोड़ रहा हर श्रृंखला, लिए प्रगति की चाह।
लिए प्रगति की चाह, कदम गतिमान हो रहे।
नील गगन में भव्य, नए प्रतिमान गढ़ रहे।
कह सुरेन्द्र यह बात, देश भारत महान है।
स्वर्णिम लिए भविष्य, बढ़ रहा वर्तमान है।
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कुण्डलिया- ३
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पानी पानी के लिए, कैसा हाहाकार।
जहां कहीं भी देखिए, लम्बी लगी कतार।
लम्बी लगी कतार, लोग चिंता में डूबे।
कूप और तालाब, सभी बन गए अजूबे।
बात यही है सत्य, जिन्दगी अगर बचानी।
सब मनमानी छोड़, सहेजें मिल कर पानी।
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कुण्डलिया- ४
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खूब बढ़ रही हर जगह, जल संकट की मार।
समझ नहीं आता मगर, कैसे पाएं पार।
कैसे पाएं पार, रूठ बैठे हैं बादल।
मँडराते हैं खूब, नहीं पर बरसाते जल।
धरा हो रही तप्त, समस्या अधिक पड़ रही।
सूख चुके जल स्रोत, उष्णता अधिक बढ़ रही।
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कुण्डलिया-५
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इस दुनिया के गर्भ में, निधियां हैं अनमोल।
लेकिन उन सब पर चढ़े, आवरणों के खोल।
आवरणों के खोल, बहुत ही विस्मयकारी।
इसी हेतु है व्यस्त, आज की दुनिया सारी।
कह सुरेन्द्र यह बात, न उलझें व्यर्थ क्रिया में।
रहें स्नेह के साथ, सभी मिल इस दुनिया में।
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कुण्डलिया- ६
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धन दौलत माया सभी, रहती सदा न साथ।
भरा खजाना छूटता, खाली रहते हाथ।
खाली रहते हाथ, मगर व्यक्ति नहीं माने।
करना इनको प्राप्त, लक्ष्य जीवन का जाने।
कह सुरेन्द्र यह बात, सुधारें मन की हालत।
मानव सेवा भाव, सत्य है यह धन दौलत।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २५/०६/२०१९