कुण्डलियाँ (बाबा राम रहीम)
सत्तसंग के आंड़ में, करते थे व्यभिचार ।
दिन में गुरू बन कर रहें, रात बनें दिलदार ।।
रात बने दिलदार,करें सुरा सुंदरी भोग ।
जन-जन को ठग रहे, सिखला कर ये जोग।
कह “प्रीतम” कविराय, जेल न भेजो इनको ।
जनता करे पुकार, आज दो फाँसी इसको ।।
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)