कुण्डलियाँ छंद
लेकर कलम दवात अरु, संग साँच कौ
साथ।
लिखूँ कुण्डली छंद अब, रखो आप
सर हाथ।।
रखो आप सर हाथ, नयी नित कविता
लाऊँ।
दे दो सुर अरु साज, गीत सँग मिलकर
गाऊँ।।
पंकज हो अब खास, फूल चरनन में
देकर।
करो प्रेम बौछार, सँग शारदे का लेकर।।
पंकज शर्मा “परिंदा”