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1 Jul 2020 · 3 min read

कुटज*

आपबीती

पति को कम उमर में हार्ट अटैक हुआ था हास्पिटल में थे …दोनो बच्चे छोटे और मेरा दिमाग काम नही कर रहा था लेकिन मेरे अलावा बाकी घर वालों का दिमाग बहुत तेजी से काम कर रहा था साजिशें बिना जगह और हालात देखे तेजी से शुरू हो चुकी थीं ( ज्यादा पढ़े लिखों की यही समस्या होती है दिमाग ज्यादा चलाते हैं बस दिशा गलत होती है ) मैं दिल्ली ले कर जाना चाह रही थी लेकिन सब इसके विरोध में अपना पक्ष रख रहे थे किसी तरह मैं और मेरी बहन दिल्ली के लिए रवाना हुये वहाँ डाक्टर ज्यादा और दोस्त भी ज्यादा के हाथों सौप कर निश्चिंत हो चुकी थी की अब पति को कुछ नही हो सकता और अगर कुछ हुआ तो वो उपर वाले की मर्जी होगी , डाक्टर चूंकि दोस्त था इसलिए उससे कुछ छिपाने की ज़रूरत नही थी सब देख समझ रहा था और कलयुगी रिश्तों पर अफसोस कर रहा था । एनजीओ प्लास्टी के बाद घर वापसी हुयी और शुरू हुआ अनगिनत दवाइयों और परहेज का दौर अपनी एक भी दवाई याद नही रखती थी लेकिन पति की पंद्रह दवाइयां मुहज़बानी याद थी ( डर सब कराता हैं ) लगता था उपर वाले ने तो अपनी नेमत दिखा दी थी अब मेरी बारी थी कहीं कोई कमी ना रह जाए । शरीर थक कर चूर हो जाता था परंतु मन ने थकान पर विजय प्राप्त कर लिया था इसलिए थकान महसूस ही नही होती थी । बहनों और दोस्तों के साथ ने दिल व दिमाग दोनों को भरपूर खाद दिया था मुर्झाना नामुमकिन था परंतु इम्तिहान अभी और था छः महीने बीते ही थे की दूसरे अटैक ने चुपके से दस्तक दी आनन फानन में फिर भागे दिल्ली अब बारी थी ओपनहार्ट सर्जरी की ये इम्तिहान और बड़ा था लेकिन भगवान नेे अपने रूप में डाक्टर दोस्त को भेेेज ही रखा था और बस ये इम्तहान भी पास कर लिया , दवाईयां पहले से कम हो गई थीं और चिंता पहले से ज्यादा…बिमारी से भी लड़ना था और परिवार से भी जो मेरे पति के ठीक होने से दुखी थे ( उनके लिए मेरे पति बस जायज़ाद में हिस्सेदार थे ना की परिवार का हिस्सा ) । समय को कौन रोक सका है वो अपनी रफ्तार से बढ़ रहा था पति के ज़िंदा रहने की कीमत चुकानी पड़ी घर वालों ने संबंध खतम कर लिए थे वजह वो जाने या भगवान लेकिन वो समाज में खुद को सही साबित करने में लगे हुये थे और समाज हँस रहा था ।
ज़िंदगी नये सिरे से चल निकली मेरे पति जिसके बचने की उम्मीद नही थी वो साइंस और उपर वाले के चमत्कार से सकुशल थे मेरे बच्चे अपने परिवार का सुख ले रहे थे , मैं एक मजबूत दीवार की तरह पति और उनके परिवार के बीच खड़ी थी । इतनी परेशानियों के बावजूद हम खुश थे बच्चे पिता की बिमारी से बेखबर थे और मैं ज्यादा सजग थी तीसरी दस्तक का डर मन में छुप कर बैठ गया था जिसका पता सिर्फ मुझे था दुसरों को इस डर की भनक तक नही लगने दी ” जो डर गया समझो मर गया ” इस लाइन को मुझे मिटाना था जिसमें मैं कामयाब भी हुई । कुटज* की तरह आज भी डट कर हर परेशानी और परिवार के आगे खड़ी हूँ तथा डाक्टर और उपर वाले के आगे नतमस्तक हूँ ।

* एक पहाड़ी पौधा जो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद डटा रहता है और उसमें पीले फूल भी खिलते हैं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 12/06/20 )

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 233 Views
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