कुछ
कुछ
बैचेनी थी अन्दर कुछ।
उठते रहे समन्दर कुछ । ।
जब भी पूजन को बैठा।
मन में उछले बन्दर कुछ ||
किस्मत क्या थी धरती थी।
कुछ उपजाऊ बन्जर कुछ ||
तन मैं खाना मन साकी ।
हो रब ऐसा मन्जर कुछ ||
ख्वाहिश जब दौलत की हो।
रखना याद सिकन्दर कुछ। ।
शान-ओ-शौकत अच्छे हैं।
मन भी रहे कलन्दर कुछ ||
डूबा चाक गिरेबां ले।
नयन झील कुछ खन्जर कुछ।।