कुछ ह्रदय उद्गारों का कहना हैं
समतल धरा से , लेकर हिमगिरी तक,
जीवन से स्वयं का ओझल होने तक,,
कर्म का वजूद रखकर बताना हैं,
कुछ करके मुझको अजंस न लेना हैं,
जीवन के कुछ पन्नो पर लिखना हैं,,
नया जीवन मिला नईया पार करना हैं,
कुछ ह्रदय…………
रवि न पहुँचे वहाँ मुझको पहुँचना हैं,
स्वयं में तप भरकर बाधाये भी क्यों
न आये उसपर अध्यारोपित होना हैं,,
अनुभव के घेरे पात्र को समझना हैं,
चहल – पहल आये कितनो की भी,
मादकता का गान रखकर चलना हैं,,
कुछ ह्रदय…………….
अांतरिक संताप को ह्रदय से सहना हैं,
करूणा को मुझ ह्रदय में बसना हैं,,
पहर रात्रि हो आये उद्दगार लिखना हैं,,
एडी पाँव धरा पिसारे जग बहना हैं,
गुंजित स्वरों की लय खटक जाये,
मेरे ह्रदय की वेदनाओ को बहना हैं,
कुछ ह्रदय……………..
मैं मासुम जग का कण स्वयं से न्यारा,
विभिन्नताओ की गौर दूनिया पर,,
स्वयं न बदलता, पर समझ जाना हैं,
परिताप लोगों के देख करूणा लाता,
कक्षा समझता ओर प्यारा जतन बताता,,
पर कुछ कहते पागल दुनियाँ में रहना हैं,,
कुछ ह्रदय………………..
कुछ मुझे कह देते कब बदलेगा स्वयं को,
पत्थर मैं बाहर बन बैठा अंदर न जाना,,
करूणा-वेदना जग अति जग को दिखाना हैं,,
मैं ह्रदय का मानुष ह्रदय को सब ले लेता,
कोई अपना कहकर मुझे समर्पण कर देता,
पर मैं परायो,अपनों को सम समझ कहना हैं,
कुछ ह्रदय……………..
कितने ह्रदय परिवेदनाओ की तप मैं बैठे हैं,
फुलों की महक में, आकर्षण की घोटि सें,
रसास्वादन निह्रदय ले फिरते ये लिखना हैं,
त्याग लोग तमाशा समझ लेते हैं ना समझ,
जीवन को स्वार्थ समझकर स्वयं बहते हैं,
कभी तो अपनों को फैरे दे देते पर घिनोना हैं,
कुछ ह्रदय………………..
नाली में पाँव पसारकर भी आन्नद लेते हैं,
कुछ नाली से दूर रहे, दूनिया से दू:खी हैं,
कैसी माया रणजीत न जानें समझना हैं,
कुछ ह्रदय……………….
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मूण्डकोशियाँ राजसमन्द,
7300174927