कुछ हो गए उदास हैं
/////////कुछ हो गए उदास हैं ////////
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इस देश की जनता इस लिए महान है
सारे सितम सहे नहीं खुलती जुबान है
ऐसी आबोहवा पर हमें रहता गुमान है
जहां जनता हुई बूढ़ी व नेता जवान हैं
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बोलते रहे जय जवान जय किसान है
पीछे इसी के कुर्सियों की खींचतान है
जो जलाए संपत्ति और तोड़े विधान है
वो सारे मिल रहे बचा अब संविधान हैं
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जो रहे एक दूसरे पे यहां ताने कमान हैं
हो रहा इस मंच पे उन सबका जुटान है
गज़ब का भाई-चारा सब में दिखा यहां
अब वही एक दूसरे का करते बखान है
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निगाहें रहीं कहीं और निशाना रहा कहीं
हैं नेता की आदतें यही चरितार्थ कर रहीं
सत्ता महक जहां भी महकती दिखाई दी
वो मधुकरों की तरह तो मंडराते रहें वहीं
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वो करते रहे इस देश का ऐसा विकास है
कुछ के खिले चेहरे कुछ हो गए उदास है
आ गई उपहारों की किसी के घर बहार है
किसी को केवल मिला उड़ता उपहास है
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– रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)