कुछ सिमटे मोती थे…..
झिलमिलाते दीपों की ओट
में कुछ सिमटे मोती थे !
उत्सव था प्रकाश पर्व का
दूर करना था अन्तस के
अँधेरे को!
खट्टी-मीठी यादों का आँगन
फिर से प्रज्वलित हुआ असंख्य
दीप जले !
बस जला न सके वो दीप
जो अन्तस को कर देता रौशन!
कमी हमेशा उर में सालती है
उस दीप की जिससे रौशन
घर आँगन था
अन्तस का प्लावित हर
कोना था!
कुछ दीप बुझे तो जले नहीं
बस स्मृतियों में प्रकाश शेष रह गये
नयन सीपी गिरे बिफर कर
अन्त:करण वेदना से भर गया
एक दीप जो सदा के लिए
अँधेरे से भर गया!
……
शालिनी साहू
ऊँचाहार,रायबरेली(उ0प्र0)