कुछ साथ जाता नहीं
गीत
कुछ साथ जाता नहीं
यहीं छूट जाता कहीं।
कि कुछ साथ जाता नहीं।।
किया गर्भ के कष्ट में एक वादा।
निकल नर्क से फिर क्यों बदला इरादा।
ये इच्छाओं का बोझ जब तूने लादा।
तू फँसता गया दुनिया में और ज्यादा।
क्यूँ रब याद आता नहीं।
कि कुछ साथ जाता नहीं।।
ये कंचन सी काया,न संग जाए माया।
तू खाली ही जायेगा खाली था आया।
ये मानुष का अनमोल जीवन गंवाया।
जो दिनरात अपनों की खातिर कमाया।
कमाकर भी पाता नहीं ।
कि कुछ साथ जाता नहीं।।
वधू चलती दहलीज के पार तक ही।
बहे आँसू अपनों के बस द्वार तक ही ।
न रोता हमें पूरा परिवार तक ही ।
यहीं छूट जाता है संसार तक ही।
रहा कोई नाता नहीं ।
कि कुछ साथ जाता नहीं।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव